लड़कियों को बहुत काम है
काव्य साहित्य | कविता चंद्र मोहन किस्कू1 Jan 2020
एक लड़की को
देखा है
तीन वर्ष की थी वह
माँ के स्तन का दूध
कुछ दिन पहले ही छोड़ा था
नाक बह रही थी उसकी
चौबीसों घंटे की।
दिन में
वह बहुत सारे
रूप धारण करती थी
वह खाना पकाती
टूटी माटी की हाँड़ी में
पत्थर के चूल्हे पर
लकड़ी के जलावन से
सब्जी भाजी बनाती
लहसुन का छौंक भी लगाती
बहुत स्वादिष्ट
मुँह में पानी आ जायेगा।
फिर "माँ" बनकर
गुड़िया रूपी बच्ची को सुलाती
गोद में खिला-खिलाकर
हाटिया को गई
हाथ में झोला लेकर
सब्ज़ी, नमक और तेल ख़रीदने
अपनी गुड़िया के लिए
लड्डू और मिठाई भी।
फिर कभी वह
मास्टरनी बनती है
हाथ में पोथी लेकर
अपनी बच्ची को पढ़ाती है
ज़ोर-ज़ोर से
फिर कभी वह
यह सब कुछ छोड़कर
अपने असली रूप में आ जाती है
"माँ" से बच्ची बनती है
अपनी माँ की गोद में जाती है।
यह सब देखकर याद आया
ईश्वर ने इस बच्ची को
कितना सुन्दर बनाया है
तीन साल की उम्र में ही
सभी कुछ जान गई है
लड़की बनकर जीवन बिताना
बहन, प्रेमिका, पत्नी और बहू
बनने तक ही नहीं
मास्टरनी बनकर काम करना भी
बहुत सारा काम है।
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