नवीकरण
काव्य साहित्य | कविता रंजना जैन1 Oct 2020 (अंक: 166, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
समय ने ली ऐसी अँगड़ाई
क्रांति अचानक से मुस्काई
नवयुग की कुछ आहट आई
नव संचार नयी संस्कृति लाई
सोना चाँदी हीरे मोती
अब कोई ना काम आ रहे
अर्जित ज्ञान अभी तक के सब
अनुपयुक्त बेकार जा रहे!
ऐसी कठिन पहेली देकर
ईश्वर भी सारांश चाह रहा
नयी चिकित्सा नूतन पद्धति
का विश्लेषण अनुसंधान माँग रहा!
सारी चेष्टायें बाहर की थीं
भीतर मुड़ने की बारी आई
निमित्त आलम्बन छोड़ सहारे
निज प्रयोग की सुध बुध लाई!
मानव जाति का द्वन्द्व अपार
कोरोना ने किया सब बंटाधार
मिलकर सब अब काम करेंगे
नवीकरण हर बार करेंगे॥
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