पारिजात
काव्य साहित्य | कविता रंजना जैन1 Sep 2020 (अंक: 163, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
गिरे धरा पर पुष्प देखकर
मन आया पूछूँ फूलों से
बंद कली से तुम खिलने में
रूप रंग से सजने में
फिर सुगंध रस भरने में
जितना समय लगाते हो
उतना हक़ नहीं जीने का
अल्प अवधि रह पाते हो!
फूलों ने की अलग कहानी
अर्थ नहीं जीवन मनमानी
लाना यदि परिणाम निराला
बनना पड़ता है मतवाला
पीकर सोम मधुर रस अंतर
बन आकार पूर्ण अति सुंदर
सुखानंद की मंशा लेकर
गिर पड़ते झट डाली से
नये पुष्प भर जाने को!
सार यही मानव जीवन का
मोल नहीं लम्बे छोटे का
तत्व यही ज़िंदा होने का
फैला दे जो लघु जीवन में
शिव सुन्दर का शुभ संदेश
महका दे सारे उपवन को
पथ में बिखरें फूल अनेक॥
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