विजय पथ
काव्य साहित्य | कविता रंजना जैन1 Nov 2020 (अंक: 168, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
आओ मिलकर चलें
फिर नया कुछ करें
उर में विश्वास भरके विजय पथ चुनें!
निहित स्वार्थ तजकर, साज़िशों से बचकर
द्वेष "कैकेयी" के चिन्तन को चित ना धरें
हर चुनौती में अवसर का आभास हो
प्रस्थान अब "राम" जैसा करें!
आओ मंथन करें
ना निराशा भरें
नव सृजन हेतु प्यारा, विजय पथ चुनें॥
"अहिल्या" के जैसे न शापित हो नारी
हो सम्मान "शबरी" सा कल्याणकारी
हिंसा बुराइयों का "रावण" जलाकर
उद्धार अब "राम" जैसा करें!
आओ कौशल भरें
बेटी शिक्षित करें
ज्ञान प्रतिभा से रोशन, विजय पथ चुनें॥
देखना हो अगर, भ्रातृ प्रेम जिगर
दृष्टांत दूजा ना "भरत" सा मगर
शिरोधार्य आदेश भगवन् का प्यारा
"अयोध्या" को फिर "राम" जैसा सँवारा
हम न लोभी बनें
कर्म योगी बनें
सबकी सेवा सा पावन, विजय पथ चुनें॥
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