नयी दृष्टि
काव्य साहित्य | कविता रंजना जैन1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
वह दिन अब तो दूर नहीं
जब दृष्टि नयी मिल जाएगी
कथा कहानी “संजय” की
अब इतिहास नहीं रह पायेगी।
शोर उठा है नयी खोज का
कहते हैं यह बड़ी मौज का
हर वस्तु बदल ही जाएगी
‘चिप’ स्मार्ट बहुत हो जायेगी।
कार्य जटिल थे ईश भरोसे
उनका भी तो हल निकला है
दृष्टिहीन की दुनियाँ जागी
पंगु गिरि पर चढ़ निकला है।
ए आई का नया ज़माना
हरफ़नमौला मस्त दीवाना
सबकी बदली कर जायेगा
“चिराग“अलादीन बन जायेगा।
तकनीकी जग की बात निराली
विज्ञान जगत की रोज़ दिवाली
क्या कुछ बाक़ी रह पायेगा
“रोबोटिक” मानव बन जायेगा!
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