कोरोना वायरस
काव्य साहित्य | कविता रंजना जैन1 Oct 2020 (अंक: 166, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
उठ रहा वायरस क़हर
बढ़ रहा प्रतिपल पहर!
चीन से चला चला
संक्रमण बुला बुला
मिल रहा शहर शहर
फुंकारता ज़हर ज़हर
उपद्रव मचा दिया
डरा दिया घुसा दिया
घर में या एकांत में
कमज़ोर तक बना दिया
या मौत से सुला दिया॥
क्या अजब सितम अपार है
ग़रीब पर भी मार है
आजीविका पर धार है
अमीर परेशान है
बंद घर दुकान है
लॉकडाउन महान है
कोरोना उसका नाम है॥
प्रतीति शत्रु अजेय है
उपादान शक्ति प्रमेय है
उपचार दूरी यंत्र है
बचाव मूल मंत्र है॥
यदि लक्ष्य शत्रु भेद का
प्रयोग कर्म प्रधान हो
संजीवनी उत्पाद हो
नव स्फूर्ति का संचार हो
औषधि नवनीत प्रसाद हो॥
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