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पहर को पिघलना नहीं सिखाया तुमने

सदियों से एक करवट ही बैठा है ...
बस बर्फ ही …
रंग बदलती है इसका...
सर्दियों में ....
धूप पड़ने पर... इंतज़ार में सिकुड़ी आँखों को…
और छोटा कर जाती है ...
जमे हुए अश्क और धूप से मिला रंग बिखर जाता... 
सफ़ेद ज़मीन पर
वो जैसे कोई पेंटर कुछ... 
न समझ आने पर ...
रंगों की ट्रे उड़ेल देता है ...
खाली कैनवास पर...
और कागज़ पर पड़ी बूँदों को उनके…
आखिरी पड़ाव तक चलते देखता रहता है ...
उस पन्ने को पत्थर बना कर...
आने वाले कल के बीच की… 
एक कड़ी की तरह
सँभाल लेता है दीवार पर ...
दिल के “उस” कोने में 
ऐसी ढेर सारी तस्वीरें टाँग रखीं हैं मैंने ...
नाम भी दिए हैं और
…वक़्त भी लिखा है...
रोज़ की ज़िन्दगी 
उस ताज़ा तस्वीर से हो कर ही आगे बढती है ...
सुबह का अखबार भी वही है...
और चाय का प्याला भी....
कभी आओ तो दिखा दूँ तुम्हें....
वैसे संभल कर आना....
तुम्हें देख कर ये दीवारों पर जड़े हुए "पहर” पिघलने न लगें....
"बहाव से पक्के रास्ते भी मिटटी के हो जाते हैं"…

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टिप्पणियाँ

Poonam Chandra Manu 2021/08/07 07:41 PM

बेहद शुक्रिया शैली जी।

शैली 2021/08/07 12:11 PM

बहुत अच्छा

Poonam Chandra Manu 2021/06/28 05:31 AM

धन्यवाद! राजीव जी।

Rajeev kumar 2021/06/27 08:19 PM

Kaveeta laajawab hai

पाण्डेय सरिता 2021/05/08 10:43 PM

बहुत बढ़िया! बहाव से पक्के सड़क भी मिट्टी के हो जाते हैं

कृपया टिप्पणी दें

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