सुनहरी धूप (नवल किशोर)
काव्य साहित्य | कविता नवल किशोर कुमार3 May 2012
दूर तक फैला,
नदी का किनारा,
पूरब में उगता सूरज
अनगिनत मोतियों की
असंख्य शृंखला लिये
चहचहाते पंछियों का,
नवजीवन का कोलाहल,
सुबह की नयी ताज़गी लिये,
बिखर रही है,
सुनहरी धूप।
अपने भविष्य से अंजान
सँजो रही सपने अनेक
सूर्य की लालिमा के साथ
उसके भावी तेज के साये में
स्वयं को मिटाने को आतुर
नवागंतुकों का स्वागत करती
बिखर रही है
सुनहरी धूप।
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