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भीतर से मैं कितनी खाली

1. सच मानिए वही कविता है

 

कविता का मौन भी बतियाता है
जब वह ख़ुद का पढ़वाती है
साहित्य के मंच पर
डफली पीटने की बात होती है
सच है इस भरमार की तादाद है
भीड़ भी है, 
कवियों से ज़्यादा कविताओं की
पर भीड़ में कहीं कोई कविता
अलग, सबसे अलग भी होती है
जिससे रूबरू होकर
उसे पढ़ते-पढ़ते
सोच ठिठक जाये तो लगता है
फिर से पढ़ लो
सच मानिए वही कविता है
जो ख़ुद को पढ़वाती है
बाक़ी तो ख़ैर बातें हैं, बातों का क्या? 
एक बात जो ठोस है
जिसका लोहा मैं भी मानती हूँ
कि क़लम की धार अपनी पहचान
ख़ुद करवाती है। 
उस क़लम के तेवर इतने पैने होते है
कि कोरे काग़ज़ पर लिखी वह तहरीर
दिल की दीवारों पे याद बनकर चिपक जाती है
वही कविता है
जो ख़ुद का पढ़वाती है। 
सच मानिए वही कविता है

पुस्तक की विषय सूची

  1. प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
  2. भूमिका
  3. बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
  4. कुछ तो कहूँ . . .
  5. मेरी बात
  6. 1. सच मानिए वही कविता है
  7. 2. तुम स्वामी मैं दासी
  8. 3. सुप्रभात
  9. 4. प्रलय काल है पुकार रहा
  10. 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
क्रमशः

लेखक की पुस्तकें

  1. भीतर से मैं कितनी खाली
  2. ऐसा भी होता है
  3. और गंगा बहती रही
  4. चराग़े दिल
  5. दरिया–ए–दिल
  6. एक थका हुआ सच
  7. लौ दर्दे दिल की
  8. पंद्रह सिंधी कहानियाँ
  9. परछाईयों का जंगल
  10. प्रांत प्रांत की कहानियाँ
  11. माटी कहे कुम्भार से
  12. दरिया–ए–दिल
  13. पंद्रह सिंधी कहानियाँ
  14. एक थका हुआ सच
  15. प्रांत-प्रांत की कहानियाँ
  16. चराग़े-दिल

लेखक की अनूदित पुस्तकें

  1. एक थका हुआ सच

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