अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

भीतर से मैं कितनी खाली

कुछ तो कहूँ . . .

 

प्रस्तुत काव्य संग्रह ‘भीतर से मैं कितनी खाली’ - उड़ान है उम्मीद की, अभिमान की और स्वाभिमान की। जब भी किसी रचनात्मक लेखन की नींव रखी जाती है, उसमें सुविधाओं का, संवेदनाओं का जीवंत दस्तावेज़ तैयार किया जाता है। देवी नागरानी द्वारा रचित इस काव्य संग्रह - ‘भीतर से मैं कितनी खाली’ में सामाजिक परिस्थितियों के साथ-साथ भाव मानवीय संवेदनाओं और भीतर से मनुष्य के खोखलापन, आत्मीयता और अभिव्यक्ति के साथ रचनाएँ प्रस्तुत हैं। इस काव्य संग्रह में कुछ प्रतिनिधि कविताएँ ली गई हैं और करोना काल के दरम्यान जीवन के प्रति अपनी सोच को सकारात्मकता के साथ कविताओं के माध्यम से अपने नज़रिए को अभिव्यक्त किया गया है। कविताओं में सुख, समृद्धि और सुविधाएँ मौजूद होने के बावजूद भी कहीं ना कहीं मनुष्य भीतर ही भीतर एक ख़ालीपन महसूस करता है। काव्य संग्रह ‘मैं भीतर से कितनी खाली’ भरपूर भाव और भाषा के संगम के साथ प्रस्तुत किया गया है। मनुष्य चाहे कितना भी खुश हो, कितनी भी सुविधाएँ सुख मिल जाएँ लेकिन भीतर से हमेशा ही कुछ न कुछ पाने की तमन्ना लिए हुए दिखाई देता है। इस काव्य संग्रह में ऐसे ही भाव निरंतर कविताओं में प्रस्तुत हुए हैं। दिल की भाषा दिल ही जनता है। शब्द जिस्म से होकर जब मुख तक आते है तो भाषा मुखर हो जाती है। जहाँ निशब्द की बर्फ़ जमी होती है, वहीं दर्द को शब्द देकर मनोभावों को अभिव्यक्त करते हुए प्रस्तुत काव्य में भिन्न कोण दिखाई देते हैं। मैं देवी नागरानी को हृदय से बधाई देता हूँ। उन्होंने ऐसी परिस्थितियों में इस काव्य संग्रह को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। अपने संघर्ष के साथ यह काव्य संग्रह विश्व भर में पाठकों का केंद्र बना रहेगा। करोना काल में जो मुसीबत लोगों पर आई इस काव्य संग्रह में निश्चित ही कहीं न कहीं अपने ही जिए हुए दर्द के रूप में जरूर दिखाई देगा। निश्चय ही यह काव्य संग्रह आधुनिकता और 21वीं सदी में सिद्ध होने के फल-स्वरूप समाज को एक नई दिशा प्रदान करने की कोशिश मात्र होगी। इसी उम्मीद और अपेक्षा के साथ मैं देवी नागरानी का आभार व्यक्त करता हूँ और प्रस्तुत काव्य संग्रह को साहित्यकारों, पाठकों तक और पाठकों की सोच के साथ जुड़ता हुआ एक बंधन है। आज समाज में स्वार्थ अधिक हो गया है और अब कोई मसीहा जन्म लेने वाला भी नहीं दिखाई देता। अपने संघर्ष के चक्रव्यूह से खुद ही जूझकर निकलना है।

शुभकामनाओं के साथ
डॉक्टर कामराज सन्धु
हिंदी विभाग
हरियाणा केंद्रीय विशिेवद्यालय,
महेंद्रगढ़

पुस्तक की विषय सूची

  1. प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
  2. भूमिका
  3. बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
  4. कुछ तो कहूँ . . .
  5. मेरी बात
  6. 1. सच मानिए वही कविता है
  7. 2. तुम स्वामी मैं दासी
  8. 3. सुप्रभात
  9. 4. प्रलय काल है पुकार रहा
  10. 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
  11. 6. एक दिन की दिनचर्या
  12. 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
  13. 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
  14. 9. क्या करें? 
  15. 10. समय का संकट
  16. 11. उल्लास के पल
  17. 12. रैन कहाँ जो सोवत है
  18. 13. पाती भारत माँ के नाम
  19. 14. सुख दुख की लोरी
  20. 15. नियति
  21. 16. वे घर नहीं घराने हैं
  22. 17. यादों में वो बातें
  23. 18. मन की गाँठें
  24. 19. रेंग रहे हैं
  25. 20. मुबारक साल 2021
  26. 21. जोश
  27. 22. इल्म और तकनीक
  28. 23. शर्म और सज्दा
  29. 24. लम्स
  30. 25. अपनी नौका खेव रहे हैं
  31. 26. नया साल
  32. 27. बहाव निरंतर जारी है
  33. 28. तनाव
  34. 29. यह दर्द भी अजीब शै है
  35. 30. रात का मौन
  36. 31. रावण जल रहा
  37. 32. लौट चलो घर अपने
  38. 33. उम्मीद बरस रही है
  39. 34. क़ुदरत परोस रही
  40. 35. रेत
  41. 36. मेरी यादों का सागर
  42. 37. मन का उजाला
  43. 38. लड़ाई लड़नी है फिर से
  44. 39. सिहर रहा है वुजूद
  45. 40. मेरी जवाबदारी
क्रमशः

लेखक की पुस्तकें

  1. भीतर से मैं कितनी खाली
  2. ऐसा भी होता है
  3. और गंगा बहती रही
  4. चराग़े दिल
  5. दरिया–ए–दिल
  6. एक थका हुआ सच
  7. लौ दर्दे दिल की
  8. पंद्रह सिंधी कहानियाँ
  9. परछाईयों का जंगल
  10. प्रांत प्रांत की कहानियाँ
  11. माटी कहे कुम्भार से
  12. दरिया–ए–दिल
  13. पंद्रह सिंधी कहानियाँ
  14. एक थका हुआ सच
  15. प्रांत-प्रांत की कहानियाँ
  16. चराग़े-दिल

लेखक की अनूदित पुस्तकें

  1. एक थका हुआ सच

लेखक की अन्य कृतियाँ

साहित्यिक आलेख

कहानी

अनूदित कहानी

पुस्तक समीक्षा

बात-चीत

ग़ज़ल

अनूदित कविता

पुस्तक चर्चा

बाल साहित्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

विशेषांक में

बात-चीत