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भीतर से मैं कितनी खाली

मेरी बात

 

काव्य के पंखों पर
मैं तीव्र वेग से तितली सी उड़ती हूँ
अपने आस-पास की भव्य सुन्दरता निहारने हेतु
अपनी मखमली चरम चेष्टा से
एक अनोखे आनंद की अनुभूति हेतु —

काव्य रचना और कुछ नहीं बस हृदय की भाषा है। हर मानव, जो तार्किक रूप से चिन्तन करता है और दिल की आवाज़ सुनता है वो अपने स्नेह, घृणा, धैर्य, सहानुभूति, क्रोध, आहत सन्तुलन अहसासों के विभन्न भावों की अनुभूति व्यक्त कर पाता है। काव्य लेखन एक तरह से मधुबन को सींचने जैसा है, जहाँ हम अपने विचारों के बीज बोते हैं, और ऋतु अनुसार ध्यान-ज्ञान से पोषण करते हैं, उसी प्रयत्नशीलता से काव्य रूपी अंकुर प्रफुल्लित होते हैं।

यह एक दिल की भाषा है जो सीेमत शब्दों द्वारा, असीेमत दुख-सुख-कष्ट-त्रासदियों, लालचों, अनभिज्ञताओं, एकान्तों, स्नेह-घृणाओं आदि अहसासों को प्रकट करती है। पर एक मौन भी सौ बोलने वालों को चुप करा देने में सक्षम रहता है। काव्य रचना एक जुनून है, वास्तव में यह दिल का संगीत है जो मौन रहकर भी खमोशी में सचेतन कानों से सुना जा सकता है अर्थात एक खामोश फुसफुसाहट बिना किसी भाषाई दायरे में पनपती है -जैसा मैंने महसूस किया है, देखा है . . .

अगर
तुम श्रद्धा की आँखों से देखेते हो
तो
तुम्हारे भीतर की अनदेखी दुनिया
एक नई दुनिया के द्वार तुम्हारे लिए खोलती है !

कविता भी ऐसी ही एक अनकही, अनसुनी अभिव्यक्ति है। प्रो. रमेश तिवारी ‘विराम’ जी ने अनछुए को छुआ है और अनकहे को कहते हुए लिखा है: समर्थ साहित्यकार जब अपने मन को अभिव्यक्त करता है तब उसके शब्द बांसुरी बन जाते हैं। जब वह सामाजिक विषयों पर प्रहार करता है तब उसके शब्द लाठी बन जाते हैं। उनका मानना है कि शब्द वेण की तरह होते है, वेणु अर्थात्‌ बांस—बांस से लाठी भी बनती है और बांसुरी भी।

कविता कोरी मानवीय चिंता से नहीं रची जाती। स्वरूप तब ही खिल पाता है जब उसमें ऊर्जामय भाव-बोध, समृद्ध कल्पना, रचनात्मक भाषा और सौंदर्य के बारीक़ और नये संवेदन हों। इसी तरह जीवन की पगडंडियों पर भी चलते-चलते, कभी पथरीली सड़क से दर गुजर करना पड़ता है, तो कभी सीधी सड़क पर चलना होता है। यही तो जीवन है जो अपनी करवटें बदलने से कभी बाज़ नहीं आता। इन्हीं राहों पर हिचकोले खाते इंसान के बाहर भीतर की कसौटी वक़्त की धार पर अपना परिचय देती है। जो कल बीता वह इतिहास बन गया, आने वाला कल जो आज के गर्भ में छुपा हुआ है अनजाना (मिस्ट्री) है, बस एक आज ही है जो हमारा है जिसमें हम जी रहे हैं, साँस ले रहे हैं अपनी मर्जी से, कुछ कर पाने में सक्षम हैं चाहे वह ख़ुद के लिए भला हो या बुरा,  किसी का इसमें हस्तक्षेप नहीं है। All actions by thought, word, and speech are voluntary. और यह भी एक सच है कि उस किए हुए कर्म कर के हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं, जिसका फल भी हमें ही चुकता करना है। कब कहाँ कैसे यह नियति का निर्णय है यही वह सच है जो इस काल में हमने खुली आँखों से देखा, भोगा, बस में एक बेबसी को पाया, और उसके साथ सुलह करते हुए जीवन में हर दिन एक नए सूरज की आभा को देखा जिनके स्याह साये में जीवन अपना एक अलग स्वरूप ले आया। जो बीता वह एक नए जीवन का नव निर्माण ही रहा और अब भी जारी है।

इस दौर में हर एक इन्सान अपने अपने हिस्से की लड़ाई लड़ता हुआ पाया गया—बच्चे स्कूल न जाने की कशमकश की लड़ाई, जवान घर से काम करने के द्वंद्व की, बुज़ुर्ग अपने अपने तन मन की समस्याओं के साथ एक घुटन भरे जीवन से वाबस्ता हुए। पर अब बादल छँट रहे हैं।

लेखन में भी बहुत परिवर्तन हुआ इस काल में, करोना पर कई कोणों से लेखन पढ़ने को मिला, कभी डायरी के रूप में, कभी लघुकथा के स्वरूप में, कभी काव्य के माध्यम से। मेरी ये कवितायें भी उसी समय की देन हैं, जो आपके साथ साँझा कर रही हूँ।

आपकी अपनी
देवी

पुस्तक की विषय सूची

  1. प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
  2. भूमिका
  3. बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
  4. कुछ तो कहूँ . . .
  5. मेरी बात
  6. 1. सच मानिए वही कविता है
  7. 2. तुम स्वामी मैं दासी
  8. 3. सुप्रभात
  9. 4. प्रलय काल है पुकार रहा
  10. 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
  11. 6. एक दिन की दिनचर्या
  12. 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
  13. 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
  14. 9. क्या करें? 
  15. 10. समय का संकट
  16. 11. उल्लास के पल
  17. 12. रैन कहाँ जो सोवत है
  18. 13. पाती भारत माँ के नाम
  19. 14. सुख दुख की लोरी
  20. 15. नियति
  21. 16. वे घर नहीं घराने हैं
  22. 17. यादों में वो बातें
  23. 18. मन की गाँठें
  24. 19. रेंग रहे हैं
  25. 20. मुबारक साल 2021
  26. 21. जोश
  27. 22. इल्म और तकनीक
  28. 23. शर्म और सज्दा
  29. 24. लम्स
  30. 25. अपनी नौका खेव रहे हैं
  31. 26. नया साल
  32. 27. बहाव निरंतर जारी है
  33. 28. तनाव
  34. 29. यह दर्द भी अजीब शै है
  35. 30. रात का मौन
  36. 31. रावण जल रहा
  37. 32. लौट चलो घर अपने
  38. 33. उम्मीद बरस रही है
  39. 34. क़ुदरत परोस रही
  40. 35. रेत
  41. 36. मेरी यादों का सागर
  42. 37. मन का उजाला
  43. 38. लड़ाई लड़नी है फिर से
  44. 39. सिहर रहा है वुजूद
  45. 40. मेरी जवाबदारी
क्रमशः

लेखक की पुस्तकें

  1. भीतर से मैं कितनी खाली
  2. ऐसा भी होता है
  3. और गंगा बहती रही
  4. चराग़े दिल
  5. दरिया–ए–दिल
  6. एक थका हुआ सच
  7. लौ दर्दे दिल की
  8. पंद्रह सिंधी कहानियाँ
  9. परछाईयों का जंगल
  10. प्रांत प्रांत की कहानियाँ
  11. माटी कहे कुम्भार से
  12. दरिया–ए–दिल
  13. पंद्रह सिंधी कहानियाँ
  14. एक थका हुआ सच
  15. प्रांत-प्रांत की कहानियाँ
  16. चराग़े-दिल

लेखक की अनूदित पुस्तकें

  1. एक थका हुआ सच

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