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अति दूर

ढूँढ़ रही हैं अँखियाँ मेरी,
तुम हो कितनी दूर
नाप न पाई दूरी अब तक,
प्रियतम तुम अति दूर
 
आस का दीपक लिये करों में,
पंथ निहारूँ साँझ सवेरे
पागल मन ये जान न पाये,
प्रीत वैरागी मन उलझाये
छेड़ूँ जब वीणा के तार,
करुण स्वरों की हो बौछार
कहती है अम्बुआ की डार,
ग्रीष्म ऋतु है दूर
तुमको फिर भी ढूँढ रही हूँ,
प्रियतम तुम अति दूर
 
खुले नयन में सपने बुनती,
अमर प्रेम की ज्योत जलाये
विरह की पीड़ा से मैं जलती,
परदेसी पर तुम न आए
मुझ बिरहन को सखियाँ देखें,
पूछें दिल का हाल ?
रूठ गया मधुमास है मुझ से,
रूठा है जगसार
आ जाओ प्रिय पाहुन से तुम
बन सावन की बहार
बुझती बाती रोशन कर दो,
अमर प्रीति अवलोकित कर दो
आकर प्रियतम पास मेरे तुम,
दूरी कर दो दूर
 
प्रियतम तुम अति दूर हो मुझसे,
प्रियतम तुम अति दूर

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