ठिठुरी कविता
काव्य साहित्य | कविता सविता अग्रवाल ‘सवि’31 Jan 2016
सर्दी के मौसम में, ठिठुरी कविता
रज़ाई में दुबकी, सिकुड़ी कविता
मुँह बाहर निकालती है और
फिर दुबक जाती है
यही क्रम था चल रहा
महीना बीत गया ...
आज मैंने कविता को उठाया
माथा चूमा, सहलाया,
रज़ाई से निकाला
गर्म रखने का आश्वासन दे,
धीरे-धीरे उसके हाथों को सहलाया
मौजे, दस्ताने पहना कर
आराम दिलाया
उसमें कुछ उर्जा जगाई
जिससे वह अपने को सँभाल पाई
उसे उठाया और धूप में बिठाया
मूँगफली, रेवड़ी का आनंद दिलाया
कविता सिहराई,
मुझे देख कर मुस्कुराई
मैंने भी झट क़लम उठाई
काग़ज़ पर रख उसको
उसकी अहमियत समझाई
कपड़ों में लदी, भावों से सजी
कविता . . .
अपने से ही शरमाई और गुदगुदाई।
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