बच्चों की छुट्टियाँ
काव्य साहित्य | कविता अनुपमा रस्तोगी1 Aug 2019
बच्चों के कॉलेज जाने
और छुट्टियों में घर आने पर,
कितना अंतर हैं
दोनों प्रसंगों की
भावनाओं में।
जाने का समय वोह
घटती बढ़ती शॉपिंग लिस्ट,
आख़िरी दम तक
न ख़तम होने वाली पैकिंग।
कुछ छूट तो नहीं गया -
इसका डर,
फिर ठीक से पहुँच गया -
इसकी फ़िकर।
वापिस घर आने पर
वोह रौनक़ वोह चहक,
किचन में बनते
ब्रेड पकौड़ों की महक।
ढेर सारे प्लान्स और
सब पूरे करने का जोश,
फिर देर रात जागना और
न रहना समय का होश।
बच्चे हैं...
कब तक घर पर टिकेंगे,
यह पंछी तो
अपना घोंसला बुनेंगे ।
पर इनके
घर आने और जाने का घटनाक्रम
रोज़मर्रा ज़िन्दगी का बस-
यही तो है मर्म...!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
Yatin 2019/08/02 06:37 PM
Adbhuta
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
नज़्म
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
अनिल 2023/11/01 10:26 AM
एक parent कि भावनाओं को बहुत कुशलता से सँजोया है। घोंसले की नियति है, बच्चों को उड़ना ही है। कालेज तक तो फिर भी ठीक है, जब काम करेंगे, अपना घर बसाएंगे तो और कम समय दे पाएंगे। अच्छा लिखा है।