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बच्चों की छुट्टियाँ

बच्चों के कॉलेज जाने 
और छुट्टियों में घर आने पर,
कितना अंतर हैं 
दोनों प्रसंगों की 
भावनाओं में।

 

जाने का समय वोह 
घटती बढ़ती शॉपिंग लिस्ट,
आख़िरी दम तक 
न ख़तम होने वाली पैकिंग।
कुछ छूट तो नहीं गया -
इसका डर,
फिर ठीक से पहुँच गया -
इसकी फ़िकर।

 

वापिस घर आने पर 
वोह रौनक़ वोह चहक,
किचन में बनते 
ब्रेड पकौड़ों की महक।
ढेर सारे प्लान्स और 
सब पूरे करने का जोश,
फिर देर रात जागना और 
न रहना समय का होश।

 

बच्चे हैं... 
कब तक घर पर टिकेंगे,
यह पंछी तो 
अपना घोंसला बुनेंगे ।
पर इनके
घर आने और जाने का घटनाक्रम 
रोज़मर्रा ज़िन्दगी का बस-
यही तो है मर्म...!

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टिप्पणियाँ

अनिल 2023/11/01 10:26 AM

एक parent कि भावनाओं को बहुत कुशलता से सँजोया है। घोंसले की नियति है, बच्चों को उड़ना ही है। कालेज तक तो फिर भी ठीक है, जब काम करेंगे, अपना घर बसाएंगे तो और कम समय दे पाएंगे। अच्छा लिखा है।

Yatin 2019/08/02 06:37 PM

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