लॉकडाउन
काव्य साहित्य | कविता अनुपमा रस्तोगी1 May 2020 (अंक: 155, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
यह लॉकडाउन हमें जीना सीखा गया
घर की साफ़ सफाई
बर्तनों की धुलाई
पतियों को घर के काम में
हाथ बँटाना सिखा गया।
हर काम ख़ुद करना
ज्यादा परफ़ेक्शन न ढूँढ़ना
कामवालों की अहमियत
और उनके दुःख दर्द समझा गया।
थोड़े में जीना
कम में मस्त रहना
अपनों का साथ
रिश्तों में गर्माहट जगा गया।
वीकेंड दोस्तों का साथ
अपने ही घर में
अपनी बियर से भरे हाथ
ज़ूम पर पार्टी करवा गया।
स्विगी ज़ोमैटो का
अचानक बंद होना
फिर रसोई में बनते
व्यंजनों की महक
घर में जलेबी भी बनवा गया।
सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में
नए दोस्त
नए समीकरण बना कर
दिलों की दूरी कम करवा गया।
नीला धुला आसमान
ताज़ी हवा मैं साँस
चिड़ियों की चहचहाट
बालकनी से रिसोर्ट का नज़ारा दिखा गया।
भूले बिसरों से मिलवा गया
उम्मीद की किरण जगा गया
सोई इंसानियत को झकझोर गया
यह लॉकडाउन हमें जीना सिखा गया।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
नज़्म
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं