उधार नाश्ता
काव्य साहित्य | कविता अनुपमा रस्तोगी1 Sep 2019
(एक सुबह की मीठी नोक झोंक के बाद)
तुम यह जो सुबह देर से उठते हो
और उठते ही ऑफ़िस भाग जाते हो,
ऑफ़िस तो टाइम पर पहुँच जाते हो
अनजाने में कितनी अनकही बातें पीछे छोड़ जाते हो।
ताज़ी नई सुबह, बातें, चाय और नाश्ता
तुम पर रहे उधार और हमारा रिश्ता,
देर होने पर तुम्हारी चिड़चिड़ाहट
और हम दोनों में बेवज़ह खड़खड़ाहट।
दो बर्तन हैं, कभी कभी टकराएँगे
पर यह नहीं कि आप हमेशा मुँह फुलायेंगे ,
हर पल अनमोल है और हर साथ क़ीमती
कहीं देर न हो जाये जब तुम्हें समझ आये ये फिलोसोफी।
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शुभि अग्रवाल 2019/09/03 07:37 AM
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