परेशान मन
काव्य साहित्य | कविता अनुपमा रस्तोगी1 Dec 2019 (अंक: 145, प्रथम, 2019 में प्रकाशित)
कितनी बार ऐसा होता है
जब यह मन उदास होता है
चाहूँ कहीं जा कर बैठ जाऊँ
किसी के कंधे पर सर टिकाऊँ
जो मेरी बात चुपचाप सुने
गले लगाए, थपथपाये
कुछ पूछे नहीं, बस सुने।
पर यह सब बेमानी है
यह सोच बड़ी रूमानी है,
कहीं ऐसा होता है
बस एक ख़्याल अनोखा है ।
हर कोई मसरूफ़, हर कोई व्यस्त
सब साथ हैं पर अपने में मौजमस्त ,
ज़रा उदास हो तो; सब भागते
जैसे हमें यह नहीं जानते।
अरे भाई यह परेशान मन
मेरे ही मन का हिस्सा है,
सब दिन एक से नहीं होते
यही तो इस जीवन का क़िस्सा है।
मेरा साथ दो मुझे सुनो
ज़्यादा नहीं इतना तो करो,
माना कि निगेटिव विचारों का चक्रव्यूह
है बुरा और आत्मघाती
पर इतनी समझ होती
तो, क्यों होती मन में विचारों की कुश्ती ।
कई बार इसे चाहिए सहारा
जो हटा दे यह कोहरा
परेशान दिल पर लगा दे मरहम
एक सच्चा साथी और हमदम।
(एक बड़े शहर में एक अकेली शाम)
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Anuj Gupta 2019/12/01 12:57 AM
Nice n realistic