बूढ़ी माँ!
काव्य साहित्य | कविता रमेश गुप्त नीरद1 Feb 2022 (अंक: 198, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
तिल तिल ज़िन्दगी भर जलती रहती ज्यूँ शमा
अपनों के प्यार को तड़पती यूँ बूढ़ी माँ!
रोटी ना पानी, ना समय पर मिलती दवा,
अपनों के सितम को सहती यूँ बूढ़ी माँ!
पालती, पोषती जिन बच्चों को छाती लगा
उनका ही प्रकोप झेलती है बूढ़ी माँ!
गर्मी, सर्दी या हो भयंकर बरसाती हवा
मौसम के थपेड़ों से बचाती है बूढ़ी माँ!
झिलमिल रखती बच्चों का जीवन उनकी माँ
एक अकेली दुनिया में रहती बूढ़ी माँ!!
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