एक पेड़ का प्रश्न
काव्य साहित्य | कविता रमेश गुप्त नीरद15 Jan 2022 (अंक: 197, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
वो ज़मीन–
जो मुझे
अंकुरित करती है
पालती-पोषती
मेरी जड़ों को
नेह जल-धार से
सिंचित कर
हरा-भरा रखती है
इस योग्य बनाती मुझे
कि मैं फलदार बन सकूँ
उसके स्नेह,
ममत्व का क़र्ज़
तो कभी नहीं चुका सकता
पर–
उसकी आकांक्षाओं को
अवश्य
पूरा करता हूँ–
और मीठे-मीठे फल
लोगों को
विश्राम करने वाले
राहगीरों को
देता हूँ—निःस्वार्थ
निःसंकोच।
–फिर तुम . . .
ऐसा क्यों नहीं करते?
इंसान होकर
अपनी धरती–
अपनी ज़मीन–
अपनी माँ से
क्यों प्यार नहीं करते?
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