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छन-छन के हुस्न उनका यूँ निकले नक़ाब से

बहर मापनी- 221 2121 1221 212
अरकान- मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन

 
छन-छन के हुस्न उनका यूँ निकले नक़ाब से
जैसे  निकल  रही  हो  किरण  माहताब  से
 
पानी  में  पैर  रखते  ही  ऐसा  धुआँ  उठा
दरिया में आग  लग  गई  उनके  शबाब से
 
जल में ही जल के मछलियाँ तड़पें इधर-उधर
फिर भी  नहा  रहे  न  डरें  वो  आज़ाब  से
 
तौहीन  प्यार  की  है  करे  बेवफ़ा  से  जो
धोका है आस  रखना  वफ़ा की जनाब से
 
जी भर पिलाई साक़ी ने कुछ भी नहीं चढ़ी
हाथों से उनके  पीते  नशा  छाया  आब से
 
बचपन की याद फिर से हमें आज आ गई
जब से मिले  हैं  फूल  ये  सूखे  किताब से
 
घुट-घुट के जीना प्यार में जीना नहीं 'निज़ाम'
खुलकर जियो ये ज़िंदगी अपने हिसाब से

—निज़ाम-फतेहपुरी

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