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इस्लाम देवबंदी बरेली सिया नहीं

बहर: मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
अरकान: मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
तक़्तीअ: 221    2121    1221    212
 
इस्लाम देवबंदी बरेली सिया नहीं
कुरआन में लिखा है कि मोमिन बुरा नहीं
 
सबका ख़ुदा तो एक है फ़िरक़े अनेक क्यों
सोचो ज़रा सा अक़्ल से फिर लड़ मना नहीं
 
इंसानियत से बढ़ के है मज़हब नहीं कोई
इंसान बनना सीखो बुरे में मज़ा नहीं
 
शैतान का है काम वो नफ़रत सिखाएगा
नेकी है प्यार बांटना कोई ख़ता नहीं
 
पैग़ामे मुस्तफ़ा है कि मिलकर रहो सदा
आपस में लड़ के होगा किसी का भला नहीं
 
झूठी है आन-बान ये झूठी है ज़िंदगी
बस मौत हक़ है मौत से कोई बचा नहीं
 
कुछ लोग कह रहे जो बटेगा कटेगा वो
तू फिर भी सो रहा है अभी तक जगा नहीं
 
इंसानियत तो मर चुकी नफ़रत की भीड़ में
जो एक है वो सेफ है बिखरा हुआ नहीं
 
किस को ग़लत कहें यहाँ किस को सही ‘निज़ाम’
पढ़ लिख के बट गए सभी अनपढ़ बटा नहीं

 

— निज़म-फतेहपुरी

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