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जो आज तेरा सच वही कल का पता नहीं

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
 
221    2121    1221    212
 
जो आज तेरा सच वही कल का पता नहीं
देखा हो जिसने कल कोई ऐसा मिला नहीं
 
जितना मिला बहुत है ज़ियादा करोगे क्या 
कुछ ले के जाते क़ब्र में इंसाँ दिखा नहीं
 
कल पर न छोड़ कुछ भी जो करना है कर अभी
आ जाए मौत कब ये कोई जानता नहीं
 
दौलत तेरी तेरी नहीं शोहरत नहीं तेरी
बस इक वहम था तेरा जो मर कर रहा नहीं
 
साथी बहुत थे जीते जी तनहा है क़ब्र में
दो गज़ ज़मीं है गहरी कोई दूसरा नहीं
 
आगे से पीछे आ गए कब पीछे चलते हम 
आई है अक़्ल देर से जब कुछ बचा नहीं
 
इक वक़्त था निज़ाम वो तेरा उरूज था
पीछे हो आज रहनुमा अपना चुना नहीं

—निज़ाम फतेहपुरी

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