दरवाज़ा खटखटाते सपने
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रति सक्सेना13 Jan 2008
इधर कुछ दिनों से सपने ने
दरवाज़ा नहीं खटखटाया
मेरे फोन की घंटी नहीं बजी
सपने को शायद
नंबर नहीं मालूम था
सोचा कि ई-मेल भेज
हालचाल पूछ लूँ सपने की
न जाने कहाँ खो गया आई डी
सपने के साथ-साथ
खटखटाता कैसे दरवाज़ा?
मेरे पास दरवाज़ा जो न था
न जाने कब और कैसे मेरे घर का दरवाज़ा ही खो गया
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