अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

हादसा–01– क़ातिल की बेटी

 

ज़िन्दगी में कन्या भ्रूण हत्या का पहला झिंझोड़ देने वाला हादसा। सन्‌ 1978, दिसंबर माह की कड़कती ठंड। शहर में विवाहों की धूम धाम, शहनाइयों का बेतहाशा . . .। शोर तो समझ गए फोटोग्राफरों की भी चाँदी। अचानक धायँ-धायँ की आवाज़ ने सब को चौंका दिया। पता चला फोटोग्राफर की बरातियों से पी-पिला कर किसी बात पर कुछ ऐसी अनबन हुई कि एक के सीने में गोली लगी वह वहीं ढेर हो गया। फोटोग्राफर समय की नज़ाकत देखते बच निकला। 

उसकी शादी अभी चंद माह पहले हुई थी और पत्नी माँ बनने वाली थी। छिपते-छिपाते उसने रात न मालूम कहाँ बिताई? लेकिन सुबह तक यह ख़बर शहर में आग की तरह फैल चुकी थी। संक्षेप में, केस चला उसे आजीवन कारावास की सज़ा मिली। जिस घर में अभी ख़ुशियों ने पूरे घूँघट खोले भी नहीं थे मातम कि दरियाँ बिछ गईं। 

बहुत बड़ा प्रश्न बहू व् बच्चे का क्या भविष्य? बात सुलगते-सुलगते कानों तक पहुँची यदि लड़की है तो गर्भपात करवा दो, लड़का है रख लो। परन्तु उससे बड़ा सवाल यह कि यह टैस्ट तो अभी पंजाब में होता नहीं। केवल मुम्बई शहर में सुना है तो किसी न किसी तरह कोई हल ढूँढ़ा जाए। मुझे वह दिन भूल कर भी नहीं भूल सकता जब पता चला था कि गर्भ में बेटी थी जिसे क़ातिल की बेटी के कलंक से बचाने के लिए ‘गिरा’ दिया गया। मैं इस सोच से स्तब्ध रह गई थी यदि बेटा होता तो उस पर क़ातिल के बेटे का कलंक या मुहर न लगती? उस समय यह बात तथ्यहीन दूरदर्शिता की। थोड़े दिनों बाद पता चला की बहू को उसके मायके वापस भेज दिया है क्योंकि ‘काम हो गया’ था। 

उसके बाद तो जो सिलसिला बेलगाम चला वह किसी से छिपा नहीं। मैं एक-एक करके उसकी लड़ी-बार चर्चाएँ अपने छोटे-छोटे संस्मरणों में करती रहूँगी जिन्होंने मुझे आज तक परेशान किया व् रुलाया है। इतने वर्षों . . . पुराना दर्द धीरे-धीरे क़लम की पकड़ में आ पायेगा ऐसा मेरा विश्वास है . . . मेरे पास एक नहीं, ऐसे अनगिनत सजीव हादसे हैं। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अति विनम्रता
|

दशकों पुरानी बात है। उन दिनों हम सरोजिनी…

अनचाही बेटी
|

दो वर्ष पूरा होने में अभी तिरपन दिन अथवा…

अनोखा विवाह
|

नीरजा और महेश चंद्र द्विवेदी की सगाई की…

अनोखे और मज़ेदार संस्मरण
|

यदि हम आँख-कान खोल के रखें, तो पायेंगे कि…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

स्मृति लेख

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं