आत्महत्या! क़त्लेआम!
काव्य साहित्य | कविता कविता गुप्ता1 Sep 2023 (अंक: 236, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
आत्महत्या छुपके, क़त्लेआम सरेआम
यह कैसे, क्यों शुरू हुआ घिनौना काम?
किस किताब में लिखे हैं? ढंग, तरीक़े
मूर्ख! जानते नहीं क्या होंगे परिणाम?
ख़ून बहा, व्यर्थ गया, माँ, धरती माँ रोई,
मचा कोहराम हुआ मानव चोला बदनाम।
अगर यही मंशा? चलो सरहद पर चलें,
ताकि यह तन काम आए, देकर बलिदान।
आह! देखने, सुनने वाले स्तब्ध रह जाते,
मन की पीड़ा किस को कहें, मूक रह पाते।
चिंतनीय, यह रोग दिन प्रतिदिन बढ़ रहा,
बलात्कार के क़िस्से, रातों की नींद उड़ाते।
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