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हादसा–02– अध्जन्मी कंजक का श्राप

 

घर में सबसे छोटे बेटे की शादी, ख़ूब जश्न मनाए गए। स्वाभाविक था। वर्ष के अंदर सुंदर-सी गुड़िया का आगमन, दिल खोल कर उसका भी स्वागत। लगभग तीन वर्ष के बाद दूसरी बेटी का जन्म, जिसके आगमन की ख़बर दादा जी ने अपनी बेटियों को टेलिग्राम के माध्यम से दी, भाव कि, “तुम्हारा स्वागत है” । कुछ वर्ष चुपचाप से बीते किसी नन्हे जीव की कोई हलचल नहीं, ऐसे लगा बेटियों से पूरी तरह संतुष्ट हैं। किसी कोने में मियाँ बीबी के चाहत रही होगी? 

कोई अनुमान नहीं। भाग्य की बात बहू ने जब फिर ख़ुश-ख़बरी की ख़बर दी तो किसी को ख़बर न होने दी। किसी ‘सूझवान’ ने टैस्ट करवाने की जब सलाह दी तो देर न लगी; तीसरी लड़की का क़त्ल करवाने की। पर्दे और प्राइवेसी में सब काम हो गया। ‘मुक्ति’ मिली । कुछ मास बाद जब घर के बड़े बुज़ुर्ग को पता चला उस पर क्या वज्रपात हुआ असम्भव है लिख पाना। समय और जीव हाथ से निकल चुका था। कर्म छिपा पर घिनौना था। 

कहते हैं तमन्ना जीने नहीं देती, सुलगती है टिकने नहीं देती, पूरी न हो तो मरने भी नहीं देती। बहू फिर चक्रव्यूह में फँसी, टैस्ट की रिपोर्ट से घर में चिराग़ के जलने की आशा हो गई लेकिन इसे भी गुप्त रखा गया सोच कर कि सब को सरप्राईज़ देंगे। जैसे-तैसे समय बीत रहा था, आख़िर ख़ुशी की सम्पूर्णता पर मुहर लगने का दिन नज़दीक आने लगा। जब आया, तो दुर्भाग्य का तूफ़ान लेकर आया। प्रसव के समय डॉक्टर ने अपने हाथ खड़े कर दिए यह कह कर कि “बच्चा अंदर ही मृत हो चुका है”। सपनों के महल धूलिसात। बहनों के ख़्वाबों को ग्रहण। बाक़ी अपनों के लिए यह हृदय विदारक ख़बर एक ‘आश्चर्य’। फिर क्या था घर में मातम की दरियाँ बिछ गईं। ख़ुश क़िस्मत कहलाने वाली माँ बदक़िस्मत हो गई। आँसुओं की झड़ी में असीम दर्द था वहाँ हमदर्दी भी। उसे ढाढ़स बँधवाने के लिए चुनिंदा शब्दों की तलाश शुरू हो गई। 

पर उफ़! असफलता, निराशा व उदासी ही हाथ लगी। आख़िर ‘उसके’ न्याय को सर्वोपरि कह कर चुप रहना पड़ा । जैसे-जैसे समय बीतता गया यह नासूर सालता रहा, लेकिन उस नन्ही जान के क़त्ल का ग़ुनाह कितना साल रहा था और बड़ा महँगा पड़ा था कौन जानता? एक दिन बरबस जब किसी के मुँह से निकला “अध्जन्मी कंजक का श्राप तो लगना ही था” यह कितना सच है या था, निर्णायक हम सभी? सच्चाई तो यह, यह हादसा आज भी उतना ही कष्टदायक है जितना तब था। 

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