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हादसा–09– कन्या भारत की मिट्टी में दफ़न

 

कन्या भ्रूण हत्या का हादसा नंबर 8 विदेश की धरती से जुड़े परिवार के बारे में लिखा था। सोचा अगला भी विदेशी धरती से जुड़े सच्चे हादसे से ही पाठकों से साँझ डाल दूँ। प्रेम विवाह कोई बहुत बड़ा गुनाह या दोष नहीं। सच्चा प्यार हो तो स्वीकार हो ही जाता है या करना ही पड़ता है। ऐसे ही रीना और राजन (काल्पनिक नाम) प्रेम के बाद वैवाहिक बंधन में जब बँधे तो थोड़ा . . . बहुत बवाल उठना स्वाभाविक ही था लेकिन दोनों का निर्णय सोच-समझ कर लिया होने के कारण जल्दी ही मानित हो गया। एक विशेष बात यह कि रीना भारत में जन्मी, पली परन्तु विदेशी नागरिक थी इसलिए उसने राजन को वर्ष के अंदर ही विदेशी धरती की सौंधी सुगंध से जोड़ लिया। ‘दोनों बेहद खुश’! परिणाम नन्ही-सी गुड़िया का शुभागमन! स्वागत! गृहस्थ जीवन के नए ताने बाने में उलझे ही थे कि एक और ‘उलझन’ सामने आ खड़ी हुई भाव कि रीना फिर से ख़ुशख़बरी देने वाली है। वैवाहिक जीवन के तीन वर्षों में ही यह प्रेमी जोड़ा दो बेटियों के माता पिता बन गए। पाठक ख़ुद अनुमान लगा सकते हैं परिवार, समाज के अतिरिक्त उन दोनों पर क्या बीत रही होगी . . .? 

ख़ैर जीवन के बहुमूल्य चार वर्ष इस जोड़े ने साथ मिल कर संघर्ष करते परस्पर स्नेह से सुखद काट लिए। किसी से कोई . . . शिकवा या शिकायत नहीं। एक दिन बैठे-बिठाए अचानक एक ‘संकेत’ ने जीवन यात्रा में ख़लल डाल दिया . . . गाड़ी पटड़ी से उतर गई . . . नए जीव की दस्तक . . . उफ़! अब क्या? कैसे? कहाँ? यह सभी प्रश्न बड़ा मुँह खोल चिढ़ाने लगे। इस ख़बर ने दोनों को अंदर तक हिला दिया। आख़िर रीना ने अपनी क़रीबी रिश्तेदार मामी से दिल की बात साझी की कि इस ‘मुसीबत’ का क्या हल है? बड़ी जल्दी ही समस्या सुलझा ली गई। मामी ने कहा “जैसे-तैसे तीन महीने काटो, पता चलने दो गर्भ में नया पल रहा भ्रूण नर है या मादा? तभी कोई निर्णय लेंगे।”

समय पंख लगा कर उड़ गया। टैस्ट की रिपोर्ट में, दुर्भाग्य-भ्रूण मादा थी। बस मामी ने ममता का लबादा उतारा भाँजी को अपनी ‘नेक राय’ देते हुए कहा, “रीना 1300 डॉलर का सवाल है, प्रबंध करो, भारत की टिकट लेकर वहाँ जाकर इस मुसीबत से छुटकारा पाओ। कारण अभी भी वहाँ यह धँधा चुपके-चुपके चल रहा है। कहो मैं किसी को मदद के लिए फोन कर देती हूँ।” रीना के गले में फँसी हड्डी का हल मिल गया था। उसने सोचा 1500-2000 डॉलर्स में उम्र भर का छुटकारा? विचार बुरा नहीं। बस टिकट ली, भारत फेरी का कोई मनघड़ंत बहाना बनाया। ‘काम तमाम’ करके वह 15 दिन के भीतर वापस लौट आई जैसे हारी जंग जीत ली हो। मुझे यह सारी कहानी तब पता चली जब मैं भारत फेरी पर गई। सच्चाई कहाँ छिपती है? सात समुन्द्र पार भी उसकी भनक लग ही जाती है। अपराधी लाख छिपाए अपराध ख़ुद ही कभी न कभी बोल उठता है। विदेशी मुहर लगवा कर आई नन्ही अजन्मी कन्या भारत की मिट्टी में दफ़न कर दी गई यह एक हादसा था या सोची समझी चाल? निर्णय आप पर है। उसके बाद पता चला था कि वह एक बेटे की माँ भी बन गई है। ख़ुशी की बात है लेकिन मुझे उस अध्जन्मी कन्या का मार्मिक ‘कत्ल’ क़तई नहीं भूलता। 

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