झूला
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अनुराधा प्रियदर्शिनी1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
(मनमोहन छंद)
विधान-मात्रा– 8, 6= 14। अंत नगण। प्रतिचरण।
चार चरण। दो या चारों चरण समतुकांत।
झूला झूलें, नील गगन।
राधा रानी, आज मगन॥
सुगंध फैली, शीतल पवन।
बाग़ ख़ुशियाँ, राज भवन॥
अमिया डाली, भृंग चमन।
प्रसून करते, रोज़ नमन॥
आया सावन, दूर अगन।
कान्हा मोरे, लगी लगन॥
मीरा गाती, श्याम भजन।
आओ प्यारे, मोर सजन॥
नैना भाए, हरित वसन।
कृष्ण बिहारी, भोग दसन॥
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