ये कैसी बाधा
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अनुराधा प्रियदर्शिनी1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
आज भव पर, ये कैसी बाधा।
काल बन कर, छाया है व्याधा।
दुश्मन मगन, गाता है गाना।
दोस्त बन कर, मारे वो ताना॥
जीवन मरण, का कैसा खेला।
आख़िर किधर, जाएगा रेला।
हे प्रभु शरण, मैं आयी तेरे।
कष्ट हर अब, आशा के फेरे॥
शांत मन अब, कैसे मैं पाऊँ।
पाकर वरद, मैं नाचूँ गाऊँ॥
दीप्त कर अब, जो भी अँधेरे॥
काट शिव अब, आशा के फेरे।
क्लेश हर अब, भोला भण्डारी।
देख अब शिव, आयी संसारी॥
हास मत कर, ज्यों अत्याचारी।
द्वार शिवगण, की चौकीदारी॥
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