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मैं नारी रही हूँ

लड़की पति के घर में भार्या है अर्थात्‌‌ भरण पोषण की अधिकारिणी। पिता के घर में वह दुहिता है अर्थात्‌ उसके सम्पत्ति का दोहन करने वाली। उसे पति की सहयोगिनी एवं सहचारिनी बनकर अपनी आर्थिक उपस्थिति भी दर्ज करनी चाहिए। मेरे विचार से महिलाओं को आत्ममंथन करना चाहिए। पाणीग्रहण से पूर्व ही स्वयं को सशक्त बनाए ताकि पितृकुल के ऋण से ऋण मुक्त हो सके। आजीवन अपने कर्तव्यों का सम्यक निर्वाह करने के लिए कटिबद्ध रहना चाहिए। पति के रिक्त कोष को परिपूर्ण करके समस्त नारी समाज को कलंकित होने से बचाएँ। स्वयं को तपस से पूर्ण बनाएँ। परिवार के साथ साथ समाज के प्रति भी अपने उत्तरदायित्व का सम्यक निर्वाह करें। पाँच पतियों वाली पाँचाली प्रत्येक पति के पास अपने तपोबल से कुँवारी की भाँति जाती थी। अपने गर्भ से देवताओं को उत्पन्न करें, अदिति बने। गार्गी और मैत्रेयी के समकक्ष विदुषी बने। अनुवांशिक आशीर्वाद एवं अपने कर्म का सम्यक संतुलन बनाकर जीवन को पूर्णता की ओर ले जाए। फूल कुमारी नहीं बने बल्कि संध्या और सावित्री के तेज से परिपूर्ण हो। 

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