स्वप्न सुंदरी
काव्य साहित्य | कविता मीनाक्षी झा1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
हैसियत की हदों को मैं लाँघ लेती
बाँध लेती तुझे मैं भगवान
यदि चिरयुवा होता दिवस यह और
जाने का कभी उपक्रम न करता
मोहिनी के प्रमाद में
गाती गुलाबी गीत
मुक्त कर देती तुझे हे अनंत
जो मुझे देते अभय वरदान
सतरंगी सपनों की जननी
जो है वह संध्या सुंदरी
ना हो उसका पतन,
ना हो उसका अवसान
सत्य का साक्षात्कार क्या
सर्वदा रसहीन है?
स्वप्न के आलिंगन की तो
संप्रभुता असीम है।
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