सार्थक सुबह
काव्य साहित्य | कविता प्रो. (डॉ.) प्रतिभा राजहंस1 Aug 2024 (अंक: 258, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
माँ के कोमल गुलाबी हाथों की
रंगबिरंगी चूड़ियाँ
गुलाबी बदन पर शोभने वाला ब्लाउज
माथे पर क़रीने से लिया गया आँचल
और हाथ में तांबे का जल भरा लोटा
सूर्य को अर्घ्य देने जाती
एक-एक सीढ़ी चढ़ती मेरी माँ
जाने कितनी तस्वीरें सुबह-सुबह
रोज़ उतर आती हैं मेरे ज़ेहन में
मेरी माँ, ओ मेरी माँ
पुकारता मेरा मन
तल्लीनता से निहारता मेरा मन
और मेरी सुबह
सार्थक हो जाती है।
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