सदा प्रेमाश्रु से ही स्नान करोगे क्या?
काव्य साहित्य | कविता भव्य भसीन15 Oct 2023 (अंक: 239, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
दिन निकल आया आप कहाँ हैं
कहो अब सेवा कैसे करूँ
सदा प्रेमाश्रु से ही स्नान करोगे क्या?
प्रीति वर्षण के बाद उसकी मधुर धाराएँ
समाये उर अंतर में मैं उड़ रही थी संग तुम्हारे।
मुझे लिए फिर कहीं चलोगे क्या?
चिर पिपासा को बनाये रखना
दासी से प्रेयसी फिर प्रेयसी से दासी करना
वियोग मिलन की गाथा से मुक्त कहो तुम करोगे क्या?
केवल पुष्प माल से सुंदरता तुम्हारी भी नहीं होगी
सिद्ध है बिना प्रेयसी के प्रेम की गाथा नहीं होगी
किसी अकिंचना के भुज माल से
अलंकृत स्वयं को करोगे क्या।
या उसके प्रेमाश्रु से ही स्नान करोगे,
कहो करोगे क्या?
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