क्या तुम आओगे
काव्य साहित्य | कविता भव्य भसीन1 Nov 2023 (अंक: 240, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
देखो तो कितना तरस गई हूँ मैं
क्या कभी अपनी गोद में मुझे लिटाओगे
बहुत तकलीफ़ में गुज़ारी है ये आधी सी रात
क्या कुछ देर को मेरा सर सहलाओगे
कमबख़्त आँसू रुकते रुकते बह जाते हैं
परेशान हूँ, क्या थोड़ा सा मेरा दिल बहलाओगे
कुछ मेरे भी जज़्बात रोते हैं रातों में
क्या तुम थोड़ा सा प्यार दर्शाओगे
सुना है बहुत मीठी है तुम्हारी आवाज़
बस एक बार क्या मुझे बुलाओगे
थोड़ा सा, बहुत थोड़ा सा गर तुम्हें माँग लूँ
क्या पल भर को मेरे पास तुम आओगे
गर गुज़री न मुझसे जो बाक़ी की रात
क्या फिर मुझे तुम आ कर ले जाओगे
कुछ मेरे भी जज़्बात रोते हैं रातों में
क्या तुम थोड़ा सा प्यार . . .
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