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तेरा हुस्न

 

तेरे चेहरे पर जो मचल गया 
मेरे तन बदन का क़रार है। 
तेरे माथे पर टीका नहीं 
मेरी कशमकश का किनार है। 
 
तेरी नाक पे जो बँधा रहा 
सीपिज नहीं वो जाल है। 
मेरी उफ़ ज़बाँ से निकल गई, 
वो शबाब तेरा जमाल है। 
 
तेरी आँखों पर जो ढह गई 
मेरी शर्म मेरा लिहाज़ है। 
तेरे होंठों में जो दब रहा 
मेरे दाग़-ए-दिल का इलाज है।
  
तेरे गोश पर से बह रही 
ज़ुल्फ़ हाँ क्या कमाल है। 
तेरे गालों पर जी ठहरने को 
बेक़रार जो ये शुमाल है। 
 
तेरे हुस्न का दीदार कर, 
करना यही इक काम है। 
तुझ पर हूँ अब यूँ जाँ फ़िदा 
मेरा क़त्ल, क़त्ल-ए-आम है। 

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