कहूँ कैसे?
काव्य साहित्य | कविता भव्य भसीन1 Dec 2023 (अंक: 242, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
न जिस्म मेरा न जान मेरी
न ये घर ज़मीन न ये शान मेरी
मैं टुकड़ों पर पल रहा हूँ तुम्हारे
कोई ख़्वाहिश ज़ाहिर करूँ तो करूँ कैसे
मेरी औक़ात नहीं मैं चाहूँ तुमको
कुछ कह सकूँ कुछ माँगूँ तुमसे,
दर्द भी ख़ुद से लाया हूँ क्या
दर्द ज़ाहिर करूँ तो करूँ कैसे
पानी उछलता है जिस्म का
रातों को निकलता चाँद देखे
गर बह गए दो आँसू आख़िर,
पानी को आँसू कहूँ तो कहूँ कैसे
मिली तुमसे है मोहब्बत
चाहत भी तुमसे मिली है
हर जज़्बात है जो भीख तुम्हारी
मुझे इश्क़ है कहूँ तो कहूँ कैसे
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