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तू ख़ुश क्यूँ होगा मुझसे

 

तू ख़ुश क्यूँ होगा मुझसे
कि तेरी प्यास दरिया सी 
मेरा इश्क़ बूँद भर का। 
 
मुझे नापने के मायने तो आते नहींं हैं 
पर मेरा सब कुछ देना भी 
तुझे काफ़ी नहींं था। 
 
अपनी तंग हाली पे तब 
मैं ख़ुद ही हँसता रहा
के मेरी इश्क़ की कमाई न थी 
और वसीयत में मिला भी नहींं था। 
 
मेरे लुटने के चर्चे 
मोहल्ले में तब आम होते रहे
जहाँ लोग इश्क़ की दौलत सोचते थे
ये बन्दा तो ख़ाली हाथ निकला था। 
 
क्या कहूँ तकलीफ़ नहींं कोई 
और ज़माने में बस एक हिज़्र था 
उसका प्यार नहींं था 
भटक रहा हूँ मुश्किल में कहते सबसे, 
एक मेरा यार तो था 
बस उसका दीदार नहीं था। 

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