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मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी

 

मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी
आज कल या किसी रोज़ सही
पर मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी
अपने प्रेम को समेट तुम्हारी 
उस से पूजा करूँगी
हाँ मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी
 
हृदय की दीवारों पर 
तुम्हारा नाम लिख कर
यादों के बिस्तर पर 
प्रार्थना की चादर बिछाती हूँ
तुम आओगे सोचकर हर शाम 
आस्था का दीपक जलाती हूँ। 
इसके बुझने पर ख़ुद जलती हूँ, 
जलती रहूँगी 
पर मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी। 
हाँ मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी। 
 
प्रीति पुष्पों से तुम्हारा शृंगार कर
नेत्र जल से चरणों का बुहार करती हूँ
तुम्हारे अंक में सिमट जाने की 
आकांक्षाओं की कितनी 
कठिनाई से सम्भाल करती हूँ
प्रतीक्षित हृदय तरंगों से 
तुम्हेंं अपरिमित संदेश लिखूँगी
पर मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी। 
हाँ मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी। 
 
दूरियाँ, दिलों की नज़दीकियों को 
कम नहीं कर सकती। 
मैं पहले ही तुम्हारी हूँ 
तुमसे बिछड़ नहीं सकती। 
तुम्हारे आने तक तुम्हें हृदय में, 
यादों में, नयनांजलि में भर के रखूँगी
पर मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी
हाँ मैं तुमसे ज़रूर मिलूँगी। 

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