ठिठुरन
काव्य साहित्य | दोहे निहाल सिंह15 Jan 2023 (अंक: 221, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
ठिठुरन बढ़ने ज्यूँ लगी, काँपने लगे हाथ।
जाना हो बाहर कहीं, लेकर कम्बल साथ॥
नीरद सारे छट गए, बीत गई बरसात।
सिमटने लगे हैं दिवा, बड़ी हो गई रात।
भानु छिप गया ओट में, ढक चादर नीहार।
वसुधा पर पसरी तरी, जाएँ किसके द्वार॥
पात-पात पर अनगिनत, बिखरी उजला ओस।
मनोहर दृश्य देखकर, हृदय हुआ मदहोश
सजल-सजल मुन्डेर पर, निकलने लगी धूप।
नाचने लगे खग सभी, महकने लगे रूप॥
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