निहाल सिंह - 001
काव्य साहित्य | दोहे निहाल सिंह15 Jun 2023 (अंक: 231, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
जीवन में माया सभी, मनुज यहीं रह जाय।
हो जाए काया बुरी, मन कहीं न लग पाय॥
जग में बस इक मैं भला, और सभी बेकार।
ऐसे मनुष्य का कभी, हो न कहीं उद्धार॥
मिल जाए सब कुछ तभी, लोभ और बढ़ जाय।
वाछा पूर्ण हो सके, नहीं किसा जुग आय॥
निर्धन हो या हो धनी, सब मृण में मिल जाये।
जो भी ले नाम हरि का, भला मनुज कहलाय॥
सुत की पीड़ा छोड़ के, तनया को अपनाय।
सुखमय है बापू वही, सुता रत्न है पाय॥
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