उठो जागो...
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'14 Mar 2015
उठो, जागो! अब सवेरा हो गया है।
तजो आलस, अब सवेरा हो गया है।।
उगा सूरज, बिखेरी स्वर्ण-किरणें,
धनी हुई धरा, सवेरा हो गया है।
बन्द आँखों के सपन सब झूठ सारे,
आँख खोलो सच, सवेरा हो गया है।
नीड़ से निकली हैं, चिड़िया देर की,
गा रही है गीत, सवेरा हो गया है।
जो कली डाल पर, रात भर उदास थी,
खिल बनी अब फूल, सवेरा हो गया है।
रात नागिन बनी, अब रस्सी जानलो,
त़ोड़ दो बन्धन, सवेरा हो गया है।
बहुत जगते रहें हैं, उल्लू रात भर,
सोने दो अब उन्हें, सवेरा हो गया है।
'व्यग्र' छोड़ों व्यग्रता, सब भूलकर,
बच्चे चले स्कूल, सवेरा हो गया है।
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