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अरे कोई तो बतलाओ

किसने किया शृंगार प्रकृति का
अरे, कोई तो बतलाओ! 

डाल-डाल पर फूल खिले हैं
ठण्डी सिहरन देती वात
पात गा रहे गीत व कविता, 
कितने सुहाने दिन और रात
मादकता मौसम में कैसी, 
अरे, कोई तो समझाओ।

खेत-खेत में बिखरा सोना
कौन लुटाये बन दातार
रसबन्ती, गुणबन्ती देखो
धरा करे किसकी मनुहार
रंग-महल सी बनी झोंपड़ी, 
कारण कैसा, समझाओ।

स्वागत में किसके ये मन
खड़ा हुआ है बन के प्रहरी
उजड़ा-उजड़ा सँवरा फिर से
बात समझ ना आये गहरी
मेरे मन की, तेरे मन की, 
गुत्थी अब तो सुलझाओ।

भ्रमरों का मधुरिम गुंजन
और तितली का मँडराना
चप्पा-चप्पा बरसे अमृत
नहीं कोई भी बिसराना
आया है 'ऋतुराज' आज अब, 
स्वागत में कुछ तो गाओ।

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