आँसू
कथा साहित्य | लघुकथा विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'27 Oct 2014
जब से विधायक जी, मंत्री बने, तब से उनकी व्यस्थता और अधिक बढ़ गई थी। उनका अधिकांश समय समारोहों, संगोष्ठियों, सान्त्वना एवं पुरस्कार कार्यक्रमों में ही बीतने लगा था। कुछ दिन बाद अपनी बेटी का विवाह-समारोह होने के कारण मंत्री जी ने कुछ दिनों के लिये अपनी सार्वजनिक व्यस्थताओं को विराम लगा दिया था।
आज सुबह बेटी, अपने पापा को अखबार दिखाते हुये बोली- "पापा देखो, आप अखबार में कितने अच्छे मुस्करा रहे हो, घर पर तो मैंने आपको ऐसे मुस्कुराते कभी नहीं देखा। साथ ही इसी अखबार में दूसरे चित्र में कितने ग़मगीन दिखाई दे रहे हो, इतने ग़मगीन तो आप, दादाजी गुजरे तब भी दिखाई नहीं दिए।"
बेटी की बात सुनकर मंत्री जी बोले- "बेटी, हम नेता, नेता कम, अभिनेता अधिक होते हैं।"
पिता की बात सुन बेटी मुस्कुरा गई।
अगले दिन दुल्हन की विदाई की बेला पर सभी परिवार-जन एवं उपस्थित रिश्तेदार, बेटी को ससुराल के लिये विदा कर रहे थे। बेटी आधुनिक विचारों की पढ़ी-लिखी लड़की थी वो हँस-हँस कर सभी से विदा हो रही थी। एक तरफ मंत्रीजी आँखें भर कर खड़े हुए थे। बेटी, पापा के पास जाकर, गले मिलते हुए कान में बोली – "पापा, ये आपकी आँखों के आँसू, नेता के हैं या अभिनेता के?"
ये बात सुनकर मंत्रीजी बोले- "नहीं बेटी नहीं, ये आँसू ना नेता के ना अभिनेता के हैं बल्कि ये आँसू एक बेटी के बाप के हैं ..."
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