ओ गाँधी बाबा
काव्य साहित्य | कविता विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'1 Oct 2019
गाथा मेरे देश की, गाँधी बिगड़ी आज
मन बिगड़े हैं लोगों के, बिगड़े हैं अंदाज़
बिगड़े हैं अंदाज़, शान्ति की बातें नहीं सुहाती
नित अहिंसा गोली खाती, हिंसा उत्पात मचाती
स्वार्थ बना देश से ऊपर, घृणा बना घर बैठी
बुद्धि में शुद्धि ना रही, झूठ रही अब ऐंठी
सच में ना रही क्षमता, झूठ के सामने आये
पानी को पानी करें और, दूध को दूध दर्शाये
अगर सुनो ओ गाँधी बाबा आओ फिर एक बार
भूले हैं सब आदर्श तुम्हारे, आकर करो विचार
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
गीत-नवगीत
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
दोहे
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं