ज़िन्दगी-ज़िन्दगी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अमिता शर्मा4 Jan 2015
ज़िन्दगी अपना बोझ आप ही उठाती है
चलती जाती है
चलती जाती है . . .
ज़िन्दगी
लेकिन है तो ज़िन्दगी ही न आख़िर
कब तक उठाये
कभी थक भी तो जाती है . . .
सो ज़िन्दगी को पुचकारते, सँवारते रहना चाहिए
और भी इधर उधर बिखरी पड़ी हैं जो
कभी कभी उनको भी निहारते रहना चाहिए . . .
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