बबूल एक शाश्वत सत्य है
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अमिता शर्मा14 Mar 2015
बबूल एक शाश्वत सत्य है
तब भी था
आज भी है
कल भी होगा
दादू के गाँव में भी उग आया था एक बार
दादू समझदार थे
गाँव के ख़िदमतगार थे
बबूल की शाखों पर
बबूल के पातों पर
कुल्हाड़ी नहीं चलाते थे
बबूल के तने से तख़्त नहीं बनाते थे
तख़्त के लिए गाँव नहीं बेच आते थे
जब भी सवाल नन्हे पैरों का आया
उन्होंने एक ही तरीक़ा अपनाया
बबूल की जड़ खोदी
तेल डाला
घर गए
लड़कों को सम्भाला . . .
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