मेरी हक़ूमत हैरान है पहले भी परेशान थी अब भी परेशान है
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अमिता शर्मा14 Dec 2014
पहले थी उनको मेरी ठंड से परेशानी
अब परेशानी ये कि इसके यहाँ कम्बल क्यों है
पहले मेरे जंगलीपन से परेशान थे बेचारे
अब परेशानी ये कि इसके पास जंगल क्यों है??
पहले थी उनको मेरी भूख से परेशानी
अब परेशानी ये कि इसके पास थाली क्यों है
पहले मेरे बहरेपन से परेशान थे बेचारे
अब परेशानी ये कि इसके पास गाली क्यों है??
पहले थी उनको मेरी झोपड़ से परेशानी
अब परेशानी ये कि इसके पास घर क्यों है
पहले मेरे डरे रहने से परेशान थे बेचारे
अब परेशानी ये कि सबको इसका डर क्यों है ??
पहले थी उनको मेरी दीवारों से परेशानी
अब परेशानी ये कि इसका सब बेपर्द क्यों है
पहले मेरी बेदर्दी से परेशान थे बेचारे
अब परेशानी ये की इसके पास हमदर्द क्यों है??
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