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बाँस बरोबर आया पानी

बादल आए इंद्रधनुष ले
         टूट पड़ी सेना अंबर से
                 हुए पराजित गाँव। 
 
                  बाँस बरोबर आया पानी
                  बहती जाती छप्पर-छानी
                  फिर भी मस्ती में ’रजधानी‘
 
                   यों तो उत्सव-संध्याओं में 
                   चर्चे इनके ही होते हैं 
                          पर आशंकित गाँव।
 
                 ढाणी, टिब्बों फोग-वनों में 
                 कैसा छाया ’सोग‘ मनों में
                 भय का फैला रोग जनों में
 
                       बिजली कोड़े बरसाती है      
                       खाल उधेड़ी इसने तन की
                              थर्-थर् कंपित गाँव।
 
                 किधर गया रलदू का कुनबा
                 बिखर गया हरदू का कुनबा
                 बदलू का भी डूबा कुनबा
 
                   बोल लावणी के कजली के 
                   सब गर्जन-तर्जन में डूबे
                      छितरा जित-तित गाँव। 
 

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