शब्द सभी पथराए
काव्य साहित्य | कविता डॉ. राजेन्द्र गौतम16 Jul 2007
बहुत कठिन संवाद समय से
शब्द सभी पथराए
हम ने शब्द लिखा था- ’रिश्ते‘
अर्थ हुआ बाजार
’कविता‘ के माने खबरें हैं
’संवेदन‘ व्यापार
भटकन की उँगली थामे हम
विश्वग्राम तक आए
चोर-संत के रामायण के
अपने-अपने ‘पाठ‘
तुलसी-वन को फूँक रहा है
एक विखंडित काठ
नायक के फंदा डाले
अधिनायक मुस्काए
ऐसा जादू सिर चढ़ बोला
गगा अब इतिहास
दाँत तले उँगली दाबे हैं
रत्नाकर या व्यास
भगवानों ने दरवाजे पर
विज्ञापन लटकाए
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