अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

कलुषित हो, मानुष किस ओर चला है. . .?

वचनहीन हो
क्रंदन करता,
ईर्ष्या द्वेष
क्रोध में जलता;
हृदय में
तृष्णा लेकर,
लोभी मन
जीवन कर;
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?


मिथ्या प्रेम
मूर्ख बनाता,
एकाकी हो
पछताता;
कुत्सित भाव
कलंकित हो,
संबंधों से
वंचित हो;
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?

 

निज संबंधी
को मारा,
छल प्रपंच कर
भी हारा;
नैतिकता से
हीन हुआ,
कुंठित हो
निर्बल दीन हुआ;
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?


कपट भाव से
प्रीति प्रवंचन,
हृदयहीन
करता आलिंगन;
काम-पिपासा
मात्र समर्पण,
आकुल करके
अपना जीवन;
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?


वेष शिष्ट का
स्वांग विनीता,
माया युक्ति
मन जीता;
उघड़ अंत
अपमानित होता,
दोष विधाता
को दे रोता;
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?


कैसे विडंबना
ये सहता?
शपथी बन
मिथ्या कहता;
है जगत छली
ये युग कैसा?
बन कालनेमि
मारीच जैसा;
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?


स्नेही संग
घात किया,
निंदनीय हर
बात किया;
संत रूप धर
ढोंगी ये,
आत्ममोह का
रोगी ये;
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?


आतिथ्य
अभिनन्दन भुला,
श्रेष्ठ जनों का
वंदन भुला;
लोभ काम के
वशीभूत,
मद के अधीन हो
अभिभूत;
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?


उन्मादित हो
अज्ञानी,
विध्वंस किया
बन विज्ञानी;
मानवता को
झोंक दवानल,
अट्टहास करता
ये पागल;
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?


मायावी
सिंहासन बैठा,
अहं क्रोध के
आसन बैठा;
शील-घात कर
श्रेष्ठ बना,
अमर्यादित
ज्येष्ठ बना;
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?


जननी का
अपमान किया,
पिता को न सम्मान दिया;
भ्राता को भी
इसने छला है,
जग का अब तो
नहीं भला है;
कलुषित हो,
मानुष जिस ओर चला है. . .?
कलुषित हो,
मानुष किस ओर चला है. . .?

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

कविता - क्षणिका

कविता-मुक्तक

कहानी

खण्डकाव्य

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं